Tuesday, January 17, 2023

Kabir ke dohe

(7)

साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय।
ज्यों मेंहदी के पात में, लाली लखी न जाय।।

 हे जगदीश्वर! तुम घट घट वासी हो। हर प्राणी के हदय में निवास करते हो किन्तु अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानता के कारण तुम्हें देख नहीं पाते जिस प्रकार मेंहदी के हरे पत्तों में लाली छिपी रहती है उसे सिल बट्टे से पीसकर हाथ में लगाओ तब उसकी लाली निखर आती है उसी प्रकार मन रूपी मेंहदी को ध्यान और सुमिरन रूपी सिलबट्टे से पीसो। अर्थात् अपने को परमात्मा में लीन कर दो।

(6)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोज्यो आपना, मुझसा बुरा न कोय।।

बुरा ढूंढ़ने के लिए मैं घर से निकला और ढूंढते ढूंढते थक गया किन्तु मुझे कोई बुरा नहीं मिला, जब मैंने स्वयं अपने हदय में झांककर देखा तो मुझसे बुरा संसार में कोई दिखायी ही नहीं दिया अर्थात् दूसरों की बुराइयों को देखने के बदले सर्वप्रथम अपने मन की बुराइयों को दूर करो।

(5)

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप।।

सत्य के बराबर कोई तपस्या नहीं है झूठ के समान कोई पाप नहीं है। जो प्राणी सदा सत्य बोलता है उसके हदय में पारब्रहम परमेश्वर स्वयं विराजते हैं।

(1)  जो तोकूँ कॉटा बुवै, ताहि बोय तू फूल।

तोकूँ फूल के फूल हैं, बाकूँ है तिरशूल ।।

जो तुम्हारे लिए कांटा बोता है, उसके लिए तुम फूल बोओ अर्थात् जो तुम्हारी बुराई करता है तू उसकी भलाई कर। तुम्हें फूल बोने के कारण फूल मिलेंगे और जो कांटे बोता है उसे कांटे मिलेंगे तात्पर्य यह कि नेकी के बदले नेकी और बदी के बदले बदी ही मिलता है। यही प्रकृति का नियम है।

(2)

दुरबल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।
मुई खाल की सांस से, सार भसम होई जाय।।

दुर्बल को कभी नहीं सताओ अन्यथा उसकी हाय तुम्हें लग जायेगी। मरे हुए चमड़े की धौकनी से लोहा भी भस्म हो जाता है। अर्थात् दुर्बल को कभी शक्तिहीन मत समझो।

(3)

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय।।

साधू ऐसा होना चाहिए जैसे सूप का स्वभाव होता है। सूप अपने सद्गुणों से सार वस्तु को ग्रहण करके मिट्टी कंकड़ आदि दूर उड़ा देता है। उसी प्रकार साधुजन को चाहिए कि वे व्यर्थ की वस्तुओं को न ग्रहण करें।

(4)

माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस।
जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेस।।

यह माया अनेक रूप धारण करके सभी देशों के लोगों को ठगती है और सभी इसके चक्कर में फंस कर ठगे जाते हैं परन्तु जिस ठग ने इस ठगनी को भी ठग लिया हो उस महान ठग को मेरा शत शत प्रणाम है। भावार्थ यह कि माया रूपी ठगनी को कोई संत महापुरूष ही ठग सकता है।


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Resources for preparing for SDE2/SDE3 roles

Software Design principals and patterns. (Design Patterns)  1.  https://bytebytego.com/ 2.  https://refactoring.guru/