Thursday, December 12, 2024

इश्क में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने ना दिया - सुदर्शन फ़ाकिर

 इश्क में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने ना दिया

वरना क्या बात थी किस बात ने रोने ना दिया


आप कहते थे कि रोने से ना बदलेंगे नसीब

उमर भर आप की इस बात ने रोने ना दिया


रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें

जिन को मज़बूरी-ए-हालत ने रोने ना दिया


तुझ से मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था

तांगी-ए-वक्त-ए-मुलाकात ने रोने ना दिया


एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फकीर'

हम को हर रोज़ के सदमत ने रोने ना दिया

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